दुर्गा शब्द का अर्थ है दुर्ग+आ। ‘दुर्ग’ शब्द दैत्य, महाविघ्न,
भवबन्धन, कर्म, शोक, दु:ख, नरक, यमदण्ड, जन्म, महान भय
तथा अत्यन्त रोग के अर्थ में आता है तथा ‘आ’ शब्द ‘हन्ता’
का वाचक है।
जो देवी समस्त दैत्यों और उनके भक्तों के जीवन
में आने वाले विघ्नों का हरण करती हैं उन्हें ‘दुर्गा’
कहा गया है। जिस घर में मां दुर्गा का स्वरूप विराजित
हो वहां नकारात्मक तत्व कमजोर पड़तें हैं। वे
नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तित करती है।
कठिनाइयों को भी उनके समक्ष खड़े होने में कठिनता अनुभव
होती है।
माता जगदम्बा के बाणों ने दुष्ट दुर्गम के प्राण हर लिए।
महापापी दुर्गम के मरते ही इन्द्र आदि देवता भगवती माता की स्तुति करते हुए उन पर फूलों की वर्षा करने लगे। दुर्ग राक्षस के वध से देवी का नाम दुर्गा पड़ा। दुर्गा ही मनुष्य की दुर्गतिनाशिनी हैं।
दुर्गा के नाम का ध्यानपूर्वक जप करने से व्यक्ति को धन एवं
दारार्थी को दारा यानि स्त्री मिल जाती है।
मां दुर्गा को आदिशक्ति बनाने के लिए समस्त देवताओं ने
अपनी अपनी प्यारी वस्तुएं और बहुत सी शक्तियां उपहार
स्वरूप मां को अर्पित करी तदउपरांत मां ने
महाशक्ति का रूप धरा। देवी भागवत के मतानुसार जब
पृथ्वी पर असुरी शक्तियों का अत्याचार बढऩे लगा तब
मां आदिशक्ति ने देवताओं और मानवता की रक्षा के लिए
प्रकट हुई। मां भवानी ने धरती को असुरों के आतंक से मुक्त करने
का संकल्प लिया।
भोलेनाथ ने मां दुर्गा को त्रिशूल, भगवान श्री हरि ने
सुदर्शन चक्र, वरुण देव ने शंख ,अग्नि देव ने अपनी शक्ति, पवन देव
ने धनुष बाण, इंद्रदेव ने वज्र एवं घंटा, यमराज ने कालदंड,
प्रजापति दक्ष ने स्फटिक माला,सृष्टि रचियता ब्रह्मा जी ने कमंडल, सूर्य देव ने तेज,समुद्र ने उज्जवल हार, दो दिव्य वस्त्र, दिव्य चूड़ामणि,दो कुंडल, कड़े, अर्धचंद्र, सुंदर हंसली एवं अंगुलियों में पहनने के लिए रत्नों की अंगूठियां, सरोवरों ने कभी न मुरझाने
वाली कमल की माला, पर्वतराज हिमालय ने सवारी करने
के लिए शक्तिशाली सिंह, कुबेर ने शहद से भरा पात्र
मां को उपहार स्वरूप दिए।
वेदों की कौथुमी शाखा में मां दुर्गा के सोलह
नामों का वर्णन मिलता है