"ताली बजाने के लाभ"

हम अक्सर ही यह देखते है कि जब भी आरती अथवा कीर्तन होता है. तो, उसमें सभी लोग तालियां जरुर बजाते है |लेकिन, हम में से अधिकाँश लोगों को यह नहीं मालूम होता है कि आखिर यह तालियां बजाई क्यों जाती है | हम से अधिकाँश लोग बिना कुछ जाने-समझे ही तालियां बजाया करते हैं क्योंकि, हम अपने बचपन से ही अपने बाप-दादाओं को ऐसा करते देखते रहे हैं |आपको यह जानकार काफी हैरानी होगी कि आरती अथवा कीर्तन में ताली बजाने की प्रथा बहुत पुरानी है और, श्रीमद्भागवत के अनुसार कीर्तन में ताली की प्रथा श्री प्रह्लाद जी ने शुरू की थी,. क्योंकि, जब वे भगवान का भजन करते थे तो, जोर-जोर से नाम संकीर्तन भी करते थे तथा, साथ-साथ ताली भी बजाते थे |
हमारी आध्यात्मिक मान्यता के अनुसार कहा जाता है कि जिस प्रकार व्यक्ति अपने बगल में कोई वस्तु छिपा ले और, यदि दोनों हाथ ऊपर करे तो वह वस्तु नीचे गिर जायेगी ठीक उसी प्रकार जब हम दोनों हाथ ऊपर उठकर ताली बजाते है तो, जन्मो से संचित पाप जो हमने स्वयं अपने बगल में दबा रखे है, नीचे गिर जाते हैं अर्थात नष्ट होने लगते है | कहा तो यहाँ तक जाता है कि संकीर्तन (कीर्तन के समय हाथ ऊपर उठा कर ताली बजाना) में काफी शक्ति होती है और, हरिनाम संकीर्तन से हमारे हाथो की रेखाएं तक बदल जाती है |
यदि हम आध्यात्मिकता की बात को थोड़ी देर के छोड़ भी दें तो एक्यूप्रेशर सिद्धांत के अनुसार मनुष्य को हाथों में पूरे शरीर के अंग व प्रत्यंग के दबाव बिंदु होते हैं, जिनको दबाने पर सम्बंधित अंग तक खून व ऑक्सीजन का प्रवाह पहुंचने लगता है और, धीरे-धीरे वह रोग ठीक होने लगता है | इन सभी दबाव बिंदुओं को दबाने का सबसे सरल तरीका होता है ताली | ताली दो तीन प्रकार से बजायी जाती है:-
1.- ताली में बाएं हाथ की हथेली पर दाएं हाथ की चारों अंगुलियों को एक साथ तेज दबाव के साथ इस प्रकार मारा जाता है कि दबाव पूरा हो और आवाज अच्छी आए |
इस प्रकार की ताली से बाएं हथेली के फेफड़े, लीवर, पित्ताशय, गुर्दे, छोटी आंत व बड़ी आंत तथा दाएं हाथ की अंगुली के साइनस के दबाव बिंदु दबते हैं और, इससे इन अंगों तक खून का प्रवाह तीव्र होने लगता है | इस प्रकार की ताली को तब तक बजाना चाहिए जब तक कि, हथेली लाल न हो जाए |