ॐ के 11 शारीरिक लाभ :-

ॐ, ओउम् तीन अक्षरों से बना है :- अ उ म् ।
"अ" का अर्थ है उत्पन्न होना,
"उ" का तात्पर्य है उठना, उड़ना अर्थात् विकास,
"म" का मतलब है मौन हो जाना अर्थात् "ब्रह्मलीन" हो जाना ।।
ॐ सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और पूरी सृष्टि का द्योतक है । ॐ का उच्चारण शारीरिक लाभ प्रदान करता है ।।
जानें, ॐ कैसे है स्वास्थ्यवर्द्धक...और अपनाएं आरोग्य के लिए ॐ के उच्चारण का मार्ग.!!!
1. ॐ और थायरायड :-
ॐ का उच्‍चारण करने से गले में कंपन पैदा होती है, जो थायरायड ग्रंथि पर सकारात्मक प्रभाव डालता है ।।
2. ॐ और घबराहट :-
अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है, तो ॐ के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं ।।
3. ॐ और तनाव :-
यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है ।।
4. ॐ और खून का प्रवाह :-
यह हृदय और ख़ून के प्रवाह को संतुलित रखता है ।।
5. ॐ और पाचन :-
ॐ के उच्चारण से पाचन शक्ति तेज़ होती है ।।
6. ॐ लाए स्फूर्ति :-
इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है ।।
7. ॐ और थकान :-
थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं ।।
8. ॐ और नींद :-
नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है । रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चिंत नींद आएगी ।।
9. ॐ और फेफड़े :-
कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मज़बूती आती है ।।
10. ॐ और रीढ़ की हड्डी :-
ॐ के पहले शब्‍द का उच्‍चारण करने से कंपन पैदा होती है । इन कंपन से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होती है और इसकी क्षमता बढ़ जाती है ।।
11. ॐ दूर करे तनाव :-
ॐ का उच्चारण करने से पूरा शरीर
तनाव-रहित हो जाता है ।।
आशा है आप ...अब कुछ समय ॐ का उच्चारण जरुर करेंगे ।

परिवार

परिवार का दूसरा अंग उस के बच्चे हैं। बच्चों के प्रति प्रेम करना कर्तव्य है क्योंकि उन्हें र्इश्वर ने आप के पास भेजा है मानवता की प्रगति के लिये। परन्तु यह प्रेम सत्य पर आधारित तथा गम्भीर होना चाहिये। केवल अन्धा प्रेम किसी काम का नहीं है। यह मत भूलो कि बच्चों के रूप में हम अगली पीढ़ी के प्रभार में हैं। उन्हें र्इश्वर के प्रति तथा मानवता के प्रति कर्तव्य का बोध कराना है। उन्हें जीवन के विलास तथा लालच से ही अवगत नहीं कराना है वरन जीवन के सही अथोर्ं का बोध कराना है। कुछ अमीर घरानों में बच्चोंं को किसी भी कीमत पर आगे बढ़ने की शिक्षा दी जाती हैं जो र्इश्वरीय कानून का उल्लंघन है, परन्तु अधिकाँश लोग इस प्रवृति के नहीं हैं। बच्चे परिवार के उदाहरण से ही सीखें गे अत: प्रतयेक सदस्य को अपने चरित्र से यह प्रशिक्षण देने का प्रयास करना हो गा। बच्चे परिवार के ही समान हों गे। परिवार का मुखिया भ्रष्ट है तो वे भी भ्रष्ट ही हों गे। यदि परिवार का मुखिया विलासिता का जीवन बिता रहे है तो बच्चों को सादगी का पाठ कैसे पढ़ा पाये गा। यदि परिवार के सदस्यों की भाषा संयत नहीं है तो बच्चों से कैसे अपेक्षा की जाये गी कि वे सुन्दर भाषा में, प्रिय भाषा में बात करें।
बच्चों को शिक्षा देने के लिये देश की महान संस्कृति का सहारा लिया जा सकता है। उन्हें महापृरुषों के जीवन कथाओं के बारे में बताया जा सकता है। उन को बतलाया जा सकता है कि किस प्रकार हमारे पूर्वजों ने अन्याय के विरुद्ध संघर्ष किया। अन्याय के प्रति घृणा उत्पन्न करना गल्त नहीं है। देश को इस प्रयास में परिवार की सहायता करना चाहिये परन्तु ऐसा न भी हो तो भी अपने कर्तव्य को निभाते जाना है। इस के लिये स्वयं को शिक्षित करना हो गा। इस कारण स्वाध्याय करना हो गा। उस पर चिन्तन, मनन करना हो गा तथा उसे सरल भाषा में बच्चे तक पहुँचाना हो गा।
परिवार का आरम्भ माता पिता से होता है। उन का आदर करना कर्तव्य है।उन का आदर करना कर्तव्य है। जिस परिवार में आप फले फूले, उस के पोषक को, उन के कर्तव्य पालन को, उन के अपने कर्तव्य को अपनी शä किे अनुसार निभाने का स्मरण रखना हो गा। कर्इ बार नये सम्बन्ध पुराने सम्बन्धों को पीछे छोड़ देते हैं। परन्तु वास्तव में यही सम्बन्ध गत पीढ़ी की तथा आने वाली पीढ़ी की कड़ी है।

परिवार मनुष्य द्वारा निर्मित नहीं है। वह र्इश्वरीय कृपा है। संसार की कोर्इ शä इिस बंधन को तोड़ नहीं सकती। परिवार देश से भी अधिक पवित्र है। वह जीवन है। देश सम्भवत: एक दिन विश्व में विलीन हो जाये गा जब मनुष्य मानवता के प्रति अपने कर्तव्य को समझ जाये गा परन्तु परिवार का असितत्व स्थापित रहे गा। परिवार मानवता का ही प्रतीक है। इस की प्रगति ही हमारी प्रगति है। परिवार को अधिक से अधिक जीवन्त बनाना तथा इसे देश की, मानवता की प्रगति का साधन बनाना ही हमारा लक्ष्य, हमारा कर्तव्य है। देश का कर्तव्य है कि वह मनुष्य को शिक्षित करे। परिवार का दायित्व है कि वह उसे अच्छा नागरिक बनने की प्रेरणा दे। देश तथा परिवार एक ही रेखा के दो सिरे हैं। पर जब परिवार में स्वार्थ भावना आ जाती है तो पूरा संतुलन बिगड़ जाता है।

माता पिता, बहन भार्इ, पतिन, बच्चे सभी परिवार की शाखायें हैं। इस परिवार रूपी पेड़ की सिंचार्इ प्रेम रूपी जल से ही होती है। घर को मंदिर बनाना है। भले ही इस में प्रसन्नता न हो पाये परन्तु यह गारण्टी है कि विपरीत सिथति से निपटने में अधिक मज़बूती प्राप्त हो गी। इस में आप का वह शä मिले गी जो आप के जीवन को उज्जवल बनाये गी। परिवार समाज की मूल र्इकार्इ है। इस की प्रगति ही समाज की, मानव मात्र की प्रगति है। इस के लिये सदैव प्रयत्नशील रहना है। यही परिवार के प्रति आप का कर्तव्य है।